चाह कर भी लोगों से अपना दर्द बयां नहीं कर पा रहे मध्यमवर्गीय परिवार के लोग

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नीतीश गुप्ता, गोरखपुर। पूरा विश्व कोरोना महामारी की मार झेल रहा है अपना देश भी इससे अछूता नहीं है। अपने देश में कोरोना का आंकड़ा 10 लाख पार कर गया है।

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करीब दो महीने से भी अधिक रहे लॉकडाउन के बाद प्रशासन ने भले ही दुकानों को शर्तों के साथ खोलने की अनुमति दे दी है मगर हालात आज भी लोगों के खस्ता हैं।

हफ्ते में मात्र 3 दिन दुकान खोलने का आदेश है, ग्राहक जल्दी खरीदारी करने आ नहीं रहें कमाई कुछ है नहीं, कोई करे तो करे क्या? इस संकट की घड़ी में जो सबसे ज्यादा परेशान है पर उसे बता नहीं पा रहा तो वो है मध्यमवर्गीय परिवार

असल में मध्यमवर्गीय परिवार वाले या तो अपना कोई छोटा मोटा काम कर के कमाकर खाते हैं या फिर कहीं महीने की नौकरी कर, नौकरी मतलब कुछ लोग सरकारी तो कुछ लोग प्राइवेट नौकरी कर के अपना और अपने परिवार का गुजारा करते हैं।

मध्यमवर्गीय परिवार के साथ असल दिक्कत ये है कि ये जो कमाते हैं उसी में खाते हैं लेकिन इस लॉकडाउन के दिनों सरकारी नौकरी वालों को छोड़ दें तो प्राइवेट नौकरी करने वाले या छोटा मोटा दुकान कर कमा के खाने वालों के लिए अब परिवार चलाने की दिक्कत आन पड़ी है।

समाज में एक स्टेटस मेंटेन है इस कारण किसी से राशन या खाना दान या सहायता में ले नहीं सकते। अनुराग (काल्पनिक नाम) एक मध्यमवर्गीय परिवार के मुखिया हैं, परिवार में कुल 4 सदस्य हैं।

अनुराग का शहर में ही एक छोटा सा मोबाइल शॉप है जिससे उनका खर्च चलता है लेकिन जबसे लॉकडाउन लगा दुकान बन्द था, प्रशासन के आदेश के बाद हफ्ते में तीन दिन दुकान तो खुल रहा मगर बिक्री कुछ है नहीं।

अनुराग बताते हैं कि दुकान में एक कर्मचारी रखा था काम करने को मगर उसे हटाना पड़ा क्योंकि बिक्री कुछ थी नहीं उसे सैलरी कहाँ से देते।

वहीं एक कपड़े के दुकानदार गुड्डू ने बताया कि धंधा-वंदा इस कोरोना की वजह से चौपट हो गया। कमाई कुछ है नहीं दुकान पर काम करने वाले कर्मचारियों को निकाल दिया गया है ऊपर से किरायेदार किराया के लिए परेशान करता है वो अलग।

एक मिठाई की दुकान करने वाले पंकज ने बताया कि महीने की कमाई पहले उतनी हो जाती थी जिससे हम परिवार का खर्चा भी चला लेते थे, बच्चों की फीस जमा कर देते थे और कुछ सेविंग्स कर लेते थे।

मगर लगातार लॉक डाउन की वजह से सेविंग्स खत्म हो गयी दुकान से नाम मात्र कुछ बिक्री होती है अब समझ नहीं आता करें तो करें क्या?

बसंतपुर में रहने वाले मोनू बताते हैं कि एक दुकान पर काम करता था जहां महीने का 8 हजार रुपये सैलरी मुझे मिलता था मगर लॉकडाउन के दौरान एक महीने की सैलरी तो मालिक ने दिया पर उसके बाद नौकरी से ये कहकर निकाल दिया कि जब दुकान खुल ही नहीं रहा बिक्री कुछ हो नहीं रहा तो सैलरी कहाँ से दें।

बिलन्दपुर के रहने वाले देवेंद्र बताते हैं कि परिवार का गुजारा करने के लिए ब्याज पर पैसे उठाना पड़ा है समझ नहीं आ रहा कब काम मिलेगा और कब पैसा चुकता होगा।

ऐसे ना जानें कितने ही मध्यमवर्गीय परिवार के लोग हैं जो इस समय संकट में तो हैं लेकिन उसे किसी के सामने बयां नहीं कर पा रहें।

इन परिवारों को सरकार से उम्मीद है कि सरकार शायद कुछ मध्यमवर्गीय परिवार के लोगों के लिए भी करेगी जिससे वापस इनकी जिंदगी पटरी पर लौट सके।