क्रिसमस के लिए गोरखपुर तैयार, सज गए गोलघर के बाज़ार

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रत्नेश पांडेय, गोरखपुर। गोरखपुर के प्रमुख मार्केट गोलघर के इंदिरा बाल विहार के आसपास दुकानों पर क्रिसमस की चहल पहल शुरू हो गयी है। दुकानें सजने लगी हैं। क्रिसमस ट्री और स्टार्स से बाज़ार गुलजार है। सांता क्लॉज की लाल ड्रेस देख कर आप दूर से ही समझ सकते हैं की क्रिसमस आ गया है।

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आपको बता दें कि क्रिसमस ईसाई धर्म का सबसे अहम और विश्व का सबसे लोकप्रिय त्यौहार है। जिसे हर साल 25 दिसम्बर को मनाया जाता है। यह त्यौहार आज हर जाति और धर्म के बीच समान लोकप्रियता हासिल कर चुका है। इसकी रंगारंग धूमधाम और मनोरंजन को देखते हुए अब ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुडऩे लगे हैं। यूरोप से शुरू हुआ यह त्यौहार आज विश्व में ज्यादातर जगहों पर धूमधाम से मनाया जाता है।

सेंट जॉन्स चर्च में उमड़ती है युवाओं की भीड़

क्रिसमस के मौके पर कुछ ऐसे सजता है सेंट जॉन्स चर्च

गोरखपुर में भी क्रिसमस बहुत उत्साह से मनाया जाता है। बशारतपुर सेंट जांस चर्च के बारे में कहा जाता है को यह प्रदेश का सबसे बड़ा चर्च माना जाता है। त्यौहार के मौके पर जिसे दुल्हन की तरह सजाया जाता हैं। यहां क्रिसमस के मौके पर प्रभु इशु को याद करने और उनके सामने प्रेयर करने वाले लोगों का हुजूम देखने लायक होता है।

संत जोसफ़ चर्च पारम्परिक तरीके से मनाता है क्रिसमस

सेंट जोसफ चर्च में क्रिसमस के मौके पर लगती है भीड़

रीजनल स्पोर्ट्स स्टेडियम के सामने स्थित सेंट जोसेफ चर्च ईसाई धर्म का गोरखपुर में प्रमुख केंद्र है। यहीं बिशप हाउस भी है और सेंट जोसेफ कॉलेज फॉर वूमेन, कार्मल और सेंट जोसेफ इंटर कॉलेज जैसे स्कूल भी हैं। यहां पूरे हफ्ते क्रिसमस पर कार्यक्रम होते रहते हैं जिनमें विभिन्न छात्र छात्राएं हैं शिक्षक और आम लोग हिस्सा लेते हैं।

क्यों मनाया जाता है?
क्रिसमस-डे प्रभु ईसा मसीह (जिन्हें यीशु के नाम से भी पुकारा जाता है) के जन्मदिवस के रुप में मनाया जाता है। ‘क्रिसमस’ शब्द ‘क्राइस्ट्स और मास’ दो शब्दों के मेल से बना है, जो मध्य काल के अंग्रेजी शब्द ‘क्रिस्टेमसे’ और पुरानी अंग्रेजी शब्द ‘क्रिस्टेसमैसे’ से नकल किया गया है। 1038 ई. से इसे ‘क्रिसमस’कहा जाने लगा। इसमें ‘क्रिस’ का अर्थ ईसा मसीह और ‘मस’ का अर्थ ईसाइयों का प्रार्थनामय समूह या ‘मास’ है।

यीशु के जन्‍म के संबंध में नए टेस्‍टामेंट के अनुसार व्‍यापक रूप से स्‍वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार प्रभु ने मैरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा।

गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्‍म देगी तथा बच्‍चे का नाम यीशु रखा जाएगा। व‍ह बड़ा होकर राजा बनेगा तथा उसके राज्‍य की कोई सीमाएं नहीं होंगी। जिस रात को जीसस का जन्‍म हुआ, उस समय लागू नियमों के अनुसार अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मैरी और जोसफ बेथलेहेम जाने के लिए रास्‍ते में थे। उन्‍होंने एक अस्‍तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात को यीशु को जन्‍म दिया तथा उसे एक नांद में लिटा दिया। इस प्रकार प्रभु के पुत्र यीशु का जन्‍म हुआ।