कुशीनगर में गठबंधन बनाएगी कांग्रेस प्रत्याशी आरपीएन सिंह की राह को आसान!

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आयुष द्विवेदी

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गोरखपुर।

एक है आरपीएन सिंह जोकि पूर्व गृह राज्यमंत्री रहे हैं और गांधी परिवार के बेहद खास भी, वो कुशीनगर लोकसभा से चुनाव लड़ रहे हैं। आरपीएन सिंह कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से एक हैं और उनका परिवार भी कांग्रेस से शुरू से जुड़ा रहा है। यही कारण है कि कुशीनगर सहित पूरे प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति में सबसे बड़ा कद आरपीएन सिंह का है।

2009 के लोकसभा में आरपीएन सिंह सांसद बने और तुरंत ही उनको केंद्र में मंत्री भी बना दिया गया लेकिन मोदी लहर में बहुत अच्छा वोट पाकर भी वह चुनाव हार गए। वर्तमान समीकरण के हिसाब से देखें तो आरपीएन सिंह काफी मजबूत लग रहे है। कारण यह बताया जा रहा है कि गठबंधन से नथुनी कुशवाहा के उतरने से आरपीएन की राह में मुश्किले कम होती दिख रही है। कुशवाहा वोट बीजेपी का कोर वोटर है और कुशीनगर के राजनीति में कुशवाहा जिताने और हराने का माद्दा रखते है। जातिगत समीकरण कुशवाहा गठबंधन की तरफ जाते हुए दिखाई दे रहे हैं इसीलिए गठबंधन ने यहां से बालेश्वर यादव का टिकट काट दिया। लेकिन बालेश्वर के टिकट कटने से अगर सबसे ज्यादा किसी को लाभ हुआ है तो वह आरपीएन सिंह को।

कुशीनगर के राजनीति में बालेश्वर का एक बड़ा कद है और ऊपर से उनके बिरादरी में उनका बड़ा जनाधार है। बालेश्वर के मौन होने से यादव वोटर कांग्रेस को वोट कर दें तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। वहीं दूसरी ओर बात बीजेपी की करें तो वर्तमान सांसद राजेश पांडेय की जगह पर पूर्व विधायक विजय दुबे को बीजेपी ने टिकट दिया है क्योंकि राजेश पांडेय से कार्यकर्ता बहुत नाराज थे। विजय दुबे की छवि एक कट्टर हिन्दू नेता की है यह अलग बात है कि योगी से नाराजगी के कारण वह एक बार कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़े थे और जीत भी गए थे। कुशीनगर में ब्राह्मण वोटरों की संख्या भी ठीक- ठाक है लेकिन उसका कोर वोटर कुशवाहा के छिटकने का डर उसे सता रहा है।

लेकिन बीजेपी को उम्मीद है कि इस बार भी लोग जातिवाद को छोड़कर मोदी के नाम पर वोट करेंगे लेकिन यह भी सच्चाई है कि मोदी लहर उस तरह नहीं है जिस तरह 2014 में था और ऊपर से पिछली बार बसपा और सपा का गठबंधन नही था। वहीं अगर गठबंधन की बात करें तो जातिगत दृष्टिकोण से वह सब पर भारी है। लेकिन गठबंधन के साथ मुसलमान अगर थोक में वोट कर दें तभी गठबंधन के लिए फायदा होगा। लेकिन ऐसा दिख नहीं रहा है क्योंकि अभी तक स्थिति यह है कि मुसलमान आरपीएन सिंह के साथ भी है औऱ गठबंधन के साथ भी। अब यह देखने वाली बात होंगी की आगे क्या होगा क्योंकि राजनीति में रोज समीकरण बनते और बिगड़ते रहते हैं।