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प्रियंका गांधी के कमान संभालने के बाद भी बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस पार्टी..

आयुष द्विवेदी

गोरखपुर।

कहने को तो कांग्रेस पार्टी देश की सबसे पुरानी और देश पर सबसे ज्यादा राज करने वाली पार्टी कहलाती है पर मौजूदा स्थिति जो कांग्रेस आपार्टी की है वैसी स्थिति तो शायद किसी क्षेत्रीय पार्टी की भी नहीं है। 2014 के बाद से ही दौर ऐसा आया जैसे लगा कि कांग्रेस कोई राष्ट्रीय पार्टी नहीं बल्कि कोई छोटी सी क्षेत्रीय पार्टी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद से ही कांग्रेस पार्टी टूटती चली गयी, पार्टी के कार्यकर्ताओं की सक्रियता भी खत्म होते चली गयी।

समय बीतता गया और 2019 का लोकसभा चुनाव आ गया और कांग्रेस के बड़े नेताओं के ये पता था कि उनका जनाधार खत्म हो रहा है और जनता अब उन्हें नकारने लगी है। शायद इसीलिए लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी ने राजनीति से दूर रहने वाली गांधी परिवार की बेटी प्रियंका गांधी को मैदान में उतारा। जब पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी को बनाया गया था तो कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को लगा था कि पार्टी का कायापलट होने जा रहा है।

प्रियंका के तेवर से लग भी रहा था कि वह बीजेपी से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं और कुछ हद तक उस समय भी लगा जब सोनभद्र और उन्नाव प्रकरण को प्रियंका गांधी ने सपा और बसपा से हटकर अपनी बड़ी भूमिका निभाते हुए जनता में यह संदेश दिया कि सपा और बसपा पर वह भारी हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में दो हाई टेक सीट है एक गोरखपुर तो दूसरा वाराणसी। गोरखपुर जहां से योगी आदित्यनाथ प्रतिनिधित्व करते थे दूसरा वाराणसी जहां से खुद प्रधानमंत्री मोदी सांसद है।

लेकिन सवाल यह है कि अगर 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ना है तो कांग्रेस के पास बेहतरीन कैडर होना चाहिए जो फिलहाल कांग्रेस पार्टी के पास है नहीं, यहीं नहीं कांग्रेस की स्थिति तो यहीं से पता चलती है कि उसके पास उनका कार्यालय तक नहीं है जहां उनके नेता रणनीति बना सकें। नाम ना लिखने के शर्त पर कांग्रेस पार्टी का एक सक्रिय कार्यकर्ता बताता है कि हम लोगों को बैठक करने के लिए जगह की तलाश करनी पड़ती है और आपको बताते चले कि यह दिक़्क़त सिर्फ गोरखपुर में नहीं बल्कि कुशीनगर सहित उसके आसपास के जनपदों में भी है जहां कार्यालय नहीं है। जबकि इन जनपदों में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं का गृह जनपद भी है। अगर बात करें गोरखपुर की तो जब सैयद जमाल जिला अध्यक्ष थे और उसके बाद अब मौजूदा में राकेश यादव जिलाध्यक्ष हैं लेकिन फिर भी इस मुद्दे पर या तो वह मौन हैं या पार्टी हाइकमान मौन है।

फिर सवाल यह उठता है कि बिन पार्टी दफ्तर के कैसे कांग्रेस का कायापलट हो सकता है। हां यह जरूर है कि राज्यसभा सांसद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया का दफ्तर गोरखपुर में है और वहीं से कुछ कांग्रेसियो का जमावड़ा होता है पार्टी आंदोलन के लिए। अब आप अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि आखिर पार्टी के कार्यकर्ता करें तो करें क्या बैठक करें तो करें कहां? ऐसा लगता है जैसे मानों कांग्रेस के नेता मौजूदा स्थितियों से लड़ने की बजाय खुद ही भाग रहें हो। खैर 2022 का विधानसभा चुनाव अब सामने है तो देखना होगा कि पार्टी कैसी और क्या रणनीति तैयार करती है।

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